सत्य

बन्द हो बाहर से दरवाजा
बजा रहा हो वैरी बाजा
बात-बात में करे छोटाई
रास न आये छलिया राजा।
जी को भायें मुक्त उड़ानें
सुख में भी सबको पहचानें
सभी विफलता अपनी होती
नहीं चाहिए दोष लगाने।
व्यर्थ रूठना और खिझाना
खर को खरा ज्ञान समझाना
टुकड़ों-टुकड़ों में तलाश कर
कभी नहीं दुरूख-दर्द मिटाना।
फूल गहें तज शूल का घेरा
सिर्फ सार्थक सुख का फेरा
इनकी-उनकी काम न आये
है सर्वत्र आनन्द घनेरा।
मधुकर तितली व मधुमक्खी
होना श्रेष्ठ, न बनना मक्खी
सबकुछ जग में भरा परस्पर
नियति तेरे हित संजो के रक्खी।
किस घमण्ड में फिरता फूला
उम्मीद-हिंडोला झूल के झूला
अपना बुरा करे तो झूमे
और करे तो आग बबूला।
काश सम्भलते आज ही भाई
कर स्पर्धा दीप जलायी
लिखें मानवी पाठ निरन्तर
नैतिकता की ले रोशनाई।।

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