युग शिक्षा

एन.ई.पी. में हुआ सेमेस्टर, छात्र और शिक्षक हैरान

बिना पढ़ाई रोज परीक्षा, मिला सुखद मिडटर्म विधान।

एक चौथाई मुफ्त अंक है, और प्रेक्टिकल भी खिलवाड़

प्रवेश परीक्षा और वसूली, सबके ऊपर चले जुगाड़

सीसी टीवी और कैमरे झूँठ बोलते एक लय तान।

कुछ शिक्षक कागज में होते, कुछ बेचारे भाग्य संजोते

कुछ केवल मूल्यांकन करते, कुछ अपनी किस्मत पे रोते

फटेहाल हर फजीहत सहके, प्योंदा लगाते फटे वितान।

बैठ प्रिंसिपल हुक्म चलाये, मैनेजर भी आँख दिखाये

शिक्षाविद लाचार सिमट के, गणपतियों को तेल लगाये

अन्दर से निज टूटा हारा, कैसे करे भविष्य निर्माण।

एन.सी.टी.ई. ने विसराया, व्यर्थ हुई बी.टी.सी. माया

हुई मान्यता गाँव-गाँव में, जीर्ण हुई वेतन की काया

मँहगाई की चढ़ी मार्केट, साधन से सूना मैदान।

झूँठे शान-मान की तूती, ओस पड़े भी छाजन चूती

अर्द्धसदी सपनों में बीती, बेगम तरस रही बिन जूती

कबले झूँठी आस बँधाते, झड़े बाल से सिर खलिहान।

इतना भेद न देखा जाये, गैरबराबरी सम्मुख आये

भीग रही आधुनिक पीढ़ी, शासन बातों में भरमाये

यूजीसी ने किया विधान, पाठ्यक्रम शिक्षा सनद समान।

एक ओर लखपतिया ज्ञाता, मुए दूसरे के पितु-माता

लोग समझते हैं जब हालत, विसराते हैं रिश्ता-नाता

समतामूलक सर्वसमावेशी, शिक्षा का बिगड़ा विज्ञान।।

Leave a Comment