न्याय

स्वामी भी हैवान बने तो, उसे न बख्शा जाये

कानूनी हण्टर से पीटके, उसको भी तड़पायें।

कानूनी बन्धन हो छोटा, जनता के करें हवाले

घटे नहीं विश्वास पुराना, हों न सत्य के लाले।

नैतिकता को जो दुत्कारे, उसकी करें तोड़ाई

ब्याजयुक्त नुकसान जोड़के, करें रोज भरपाई।

जबतब हृदय शान्त न बैठे, तबतक हो प्रतिशोध

न्यायोचित निरीह उबारें, सहकर सभी विरोध।

मुजरिम बहुतों के हत्यारे, दाँव-पेंच में उलझे सारे

बिना बताये जोड़ समर्थन, आत्मोद्धारक गहे किनारे।

जिसके मुँह में खून लगा, वह दगाबाज नरभक्षी

छलिया घातक जन संहारक, घूमे संग आरक्षी।

शिक्षक सेवादार सहायक, सिद्ध सहोदर भाई

सबपे अंकुश लगे बराबर, गर वो बने कसाई।

कालेज में बेटियों पे खतरा, डरे राह में राही

अपना सिर अपने हाथों में, उबले तेल कड़ाही।

एक भुजा दूसरे को काटे, सारे रिश्ते-नाते बाँटे

अनायास ही बेखबरी में, सभी श्रेष्ठ सगों को डाँटे।

समाधान में खोज समस्या, जगजीवन अरुझाये

अंधकार का बनके मुखबिर, जलता दीप बुझाये।

आज लाज के राज पे संकट, स्वामीनाथ बचायें

सृष्टिसार करुणानिधि न्यायिक, आजमगढ़ में आयें।।

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