जयपुर में दो दिन
वैवाहिक सन्दर्भ में, जयपुर के दरम्यान
दिखा जनवरी बीस से, बाइस का सुबिहान।
संग भार्या व धिया, ऐसा शुभ संयोग
मरुधर से गन्तव्य तक, बना यात्रा योग।
हवा महल पानी महल, स्वामी खाटूश्याम
ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़, जिसकी ख्याति तमाम।
दिखी बहुत समतल जगह, जहाँ-तहाँ स्तूप
स्वच्छ साफ सौहार्दमय, पावन दिव्य अनूप।
प्रथम दृष्टया राज्य यह, लगा आधुनिक धाम
कहीं राम-आराधना, कहीं पे राधेश्याम।
शिशवाँ एवं सिंगापुर के, कृष्ण पाण्डेय मूल
जिनकी स्नेहिल छाँव में, खिला महकता फूल।
सरिता के बेटे बड़े, शुभम श्रेष्ठ सुविवेक
सहज सरल वैभव अनुज, लम्बी कद के नेक।
रामकुमार मिश्रा मिले, अनुज विजय भी साथ
सुघड़ पत्नियाँ देवि सी, दिखी गहे हरि हाथ।
सपत्नीक पप्पू सरल, मातृभक्त पितृदूत
ईश्वर सबको दे सदा, ऐसे ही शिव पूत।
सरिता के माता पिता, बन्धु बान्धव सास
परिजन पुरजन मित्रजन, सबके भाव उजास।
कई नेक परिवार का, ऐसा मेल मिलाप
मानो संगम स्वर्ग का, दैवयोग प्रताप।
रीति-रस्म की श्रृंखला, हुई पूर्ण साकार
बाद एक के एक ने, लिया वैदिकाकार।
हल्दी मेंहदी रिंग की, आयी सेरेमनी रास
कथा नेहछू टोटका, गीत मांगलिक खास।
दिव्य देव दर्शन सुलभ, हुआ हमें हर हाल
श्रीहरि के सहयोग से, चमक रहा था भाल।
रंचमात्र भी छुब्धता, दिखी नहीं उस काल
रामावतरण की घड़ी, सफल हुआ यह साल।
स्नेहनिष्ठता शुभम की, प्राणप्रतिष्ठा राम
नूपुर के सौभाग्य से, होटल चारो धाम।
अद्भुत आकर्षक परम्, पंच सितारा धाम
इन्द्रलोक के महल सा, काउण्टी इन नाम।
बार-किचेन के साथ में, लान सजी सुविशाल
सेपरेट पैलेस सब पृथक, मल्टी पर्पज हाल।
संगमरमरी फर्श पर, मखमल की कालीन
जाने कितने हुनर से, पोषी गयी जमीन।
आना जाना लिफ्ट से, सेंसर से हर द्वार
खड़ा संतरी रात दिन, सुने सभी इजहार।
अत्याधुनिक सुविधा सभी, आद्यान्त भरपूर
शर्माती शोभा निरख, जन्नत में भी हूर।
इलेक्ट्रानिक संचार से, विद्युत करे कमाल
वैज्ञानिक तकनीक का, देखा गजब धमाल।
जाने कितने नवविजन, सिमट हुए हैं सिद्ध
तब लौकिक ग्लैमर पहन, ब्यूटी हुई समृद्ध।
धर्म रीति सौहार्द चिर, खास प्रीत परिहास
पिंकसिटी में सैर कर, सधी सनातन आस।
टाण्डा दिल्ली मुम्बई, देवरिया लोहाघाट
सिंगापुर आस्ट्रेलिया, सबकी संग में ठाट।
दिखे कहीं भी भेद न, सबमें सम्यक प्रीति
बातों के परिज्ञान से, जगी पुरातन नीति।
ऐसे शुभ अवसर सुखद, मिलते जहाँ विशेष
नवजीवन सम्भावना, वहाँ न होती शेष।
अद्भुत अविचल उत्स जग, स्नेहलोक का मूल
सतत् राग की रंगिणी, सर्वोत्तम अनुकूल।
चन्द पलों के राजसी, वैभव का सत्कार
मनोवाञ्छित कल्पना, ग्रहण की आकार।
स्वप्निल जीवन की प्रभा, आक्षादित चहुँओर
मानो भौतिक भास्कर, उदित सनातन छोर।
पुण्यभाव बरसे सरस, हर्षित हृदयाशीष
युग-युग जीयें धर्मसुत, उन्नत कर निज शीश।
वर-कन्या दोउ पक्ष का, खाना रहना संग
संस्कार सब साथ में, अपने-अपने ढंग।
मारवाड़ का जब हुआ, पूर्वांचल से मेल
सांस्कृतिक सत्कार का, दिखा अनेको खेल।
कनक-मुक्ति-माला पिन्हा, किये सर्व सम्मान
चन्दन वन्दन नम्रवत्, चिर कुलीन प्रमाण।
द्वारपूजा टीका अक्षत, मनोविनोद जयमाल
वैवाहिक वैदिक प्रथा, दैवयोग शुभकाल।
दिये सभी आशीष शुभ, नव दम्पति खुशहाल
वर लिलार चंदन लसे, टीका कन्या भाल।
नवादर्श अवधारणा, उर आनन्दातिरेक
हर्षित मन मन्दिर मुकुर, प्रतिविम्बित हर एक।
सर्वाधिक दीखी चमक, रही चतुर्दिक ठाट
जयपुरिया मणिकांचन, दमक मुजेहना घाट।
अर्धरात्रि सुविवाह में, गुलाबी सर्द फुहार
कांप रहे थे लोग कुछ, फैशन में लाचार।
पुनः गये सब हाल में, वैदिक प्रयोजन हेतु
जहाँ शुभम-नूपुर मिले, बँधा आजीवन सेतु।
घरी-घरी पीते रहे, जग कर काफी-चाय
किन्तु कोई भी न दिया, मद्यपान की राय।
पहली थी बारात यह, मादक द्रव्य निषेध
बाकी देखा आज ले, व्रत में लगते सेंध।
मदसेवन सर्वत्र सब, करें परोक्ष-प्रत्यक्ष
उत्तर देते अटपटा, प्रश्न बेबूझे यक्ष।
ऐसे में यह गर्वक्षण, मिला मुझे साभार
जीवन के उत्सर्ग में, सफल हुआ सत् सार।
कटी सुखद सात्विक घड़ी, प्रेम-विनोद के बीच
लगा ठहाके तब सभी, रहे चेतना सीच।
होटल से जाते समय, सबको दे उपहार
पाण्डेय दम्पति ने किया, विदा संग सत्कार।
बीत गयी सौगात तो, याद रह गयी बात
पल-पल कर कटने लगा, साप्ताहिक दिन-रात।
सिर्फ रही मस्तिष्क में, स्मृति बाकी शेष
संस्मरण चलचित्र से, उरमन वसे विशेष।
दुआ हमारी हों सुखी, रहें स्वस्थ सानन्द
उर्ध्वमुखी जीवन चले, प्रगति न होवे मन्द।
सपने सारे पूर्ण हों, उनका तने वितान
आध्यात्मिक आलोक में, अवधारें विज्ञान।।