चाँद

चलनी के बहत्तर छिदों से, नित चाँद निहारा है हमने

जलवायु नहीं है तनिक वहाँ, उरठगी जबानें कहती हैं।

अन्तस की कशक न मशक पायी, उर्वशी हेतु है तन्हाई

राधिका सुमधुवन में खोयी, की नियति ने ऐसी रुसवाई

मेरे शिव नेक समर्पण को, आतिशबाजी माना सबने

यह एक जिगर का मैग्मा है, सब ताप निगाहें सहती हैं।

मेरे उरध्वज के राष्ट्रचिन्ह, कोई तुझपे ध्वज फहराता है

कोई करता तेरी इबादत तो, कोई राकेट रोज उड़ाता है

दशकों से तुझे अक्षि मध्य बसा, लम्बे चौड़े देखे सपने

हर आस में त्रास तेरी लेकर, चाहें चिन्तातुर रहती हैं।

अर्गला बहुत सी रही किन्तु, हमने नितप्रति अपना माना

जीवन की झंझावातों में, तेरी गरिमा को पहचाना

मदमस्त व्यस्त व्यसनों में से, कुछ मुख्य तत्व दिया रबने

उनमें से बहुत शिव-दर्पण में, ही निर्मलता गहती हैं।।

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