कसाईबाड़ा

कसाईबाड़ा

जिस घर में हो रोज कर्कशा ठण्डी गर्मी जाड़ा

रत्नजड़ित होकर भी वह घर पूर्ण कसाईबाड़ा।

अन्दर की चीत्कार जहाँ से तनिक न बाहर जाये

बन्द कोठरी में प्रतिशोधी बैठा के मिर्च जलाये

तेज धड़कने घबराहट अति पीटे जोर नगाड़ा।

बन्द द्वार बाहर से प्रतिपल बड़ी कड़ी निगरानी

पग-पग पे अपमान सुरक्षित लगे तनिक न पानी

सम्बन्धों के खींचतान में हो परिवार अखाड़ा।

जहाँ नहीं आसुओं की कीमत लगे अजनबी मेला

नित समाधान के बदले बैरी बोये रोज झमेला

पुत्र उठाये पिता की अर्थी मां से मांगे भाड़ा।।

पितृ-वंचिता माँ सौतेली सासु लड़ाका ननद पहेली

संगत बुरी सगी संतति की अकुलाहट में कैद अकेली

अकड़ के उल्लू बात-बात में पढ़ाये रोज पहाड़ा।।

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