शुद्ध पेयजल का संरक्षण
स्वच्छ हवा का हो भण्डार
औषधि राशन मिले बराबर
सुखी सानन्द रहे घर बार।
बेमतलब नुकसान करें न
अनाचार से कभी डरें न
भ्रष्टाचार में पूर्ण डूबकर
नैतिकता तज नित्य मरें न।
ओढ़ मूढ़ मत काली छाया
कौन प्रबुद्ध निज दीप बुझाया
जिसने छला स्नेह संगी को
उसने घोर दुरूखों को पाया।
दागदार दे दगा दनादन
अरुझाये जब तन मन जीवन
उदासीन हो जीना तन्हा
दोहराना व्यावहारिक बचपन।
भले मिली हो भारी टीस
कभी न खोने देना खीस
मर्यादा से नहीं भटकना
देंगे सदा साथ जगदीश।
वैद्य-राजगुरु-देव जो आते
उत्सव-विपत्ति कोई दर्शाते
इन्हें भूप भी नहीं बुलाते
स्वयं ही चलके मिलने जाते।
लुप्तप्राय है पिछली नीति
तनिक सुधारें उलटी रीति
गहे सनातन नवाधुनिकता
जीवन पोषित करे सुनीति।।