मन चंचल माने नहीं, हलचल हो हर ठाँव
राज-मार्ग पर हों भले, काँप रहा हो पाँव।
हाँ-ना में ही डूबकर, खोज न पायें राह
दग्ध दृष्टि तप में नपे, रोज कराहे चाह।
अटक भटक के आत्मा, ताप सहे विक्राल
लड़े समर में योद्धा, लिये खड्ग बिन ढाल।
मृत्यु-सत्य भय-सृष्टि का, उद्गम कारोबार
सुविधा में दुविधा दिखे, रोग बिना उपचार।
बारिश में भी धूप की, जहाँ लगी हो होड़
छोड़ न पाये चंचला, नव छाया बेजोड़।
देकर सारी नोटिसें, बैठे जो खामोश
भूली-भटकी भावना, उड़ा रही हो होश।।