फागुन है गुलजार बाग में डाली डाली
आ जाते तुम मीत गा रही कोयल काली।
महुआ कटहल नीम करौदा महक रहा है
फूले लाल पलाश मधुर मन बहक रहा है
हरी भरी कचनार लचकती है मतवाली।
लहक रहे हैं ढाँख राग की आग ओढ़ के
आ जाते एक बार धरा पर राह मोड़ के
चहके वनचर देख सुबह फूलों की लाली।
लदी मंजरी अमिया हमसे नित शरमाए
रोज रात को चंदा भी घूंघट खिसकाए
हवा बहे मदमस्त लिए हर छुअन निराली।
गुड गेहूं जौ आलू सरसों चना मिठाई
गोभी गाजर धनिया चना की है बहुताई
कटेगा दारिदु पीर भरेगी बखरी खाली।
नैनों से हन वाण प्राण क्यों त्रास जगाये
रंग अबीर गुलाल तेरे बिन कौन लगाये
रूठ रहा मधुमास नेह की सूखे प्याली।
कोटि अर्चना करूँ परम् ज्योतिर्मय दाता
श्री सुमुखी से कायम रहे हमारा नाता
आने दो इस ओर उन्हें जगती के माली।
फगुआस
हमारा ब्राउज़ करें partner-sponsored Glasses, हर स्वाद और बजट के अनुरूप विभिन्न प्रकार के विकल्प, ऑनलाइन खरीदने के लिए उपलब्ध ह