उच्च श्रेष्ठ शिक्षा हो समुचित, वैज्ञानिक नैतिक आधार
अनुशासन में हो जनसंख्या, रुके भ्रष्टता अत्याचार।
औषधीय पहचान हो सबकी, चले सन्तुलित जीवन प्राण
व्यर्थ ऊर्जा क्षरण रोक कर, नित सीचें जगती उद्यान।
लगे बुरा जो न दुहराना, जनहित में ही गीत सुनाना
खुशहाली में चैन से रहना, व्यर्थ कहीं न भीड़ बढ़ाना।
वनस्पति पानी हवा अनाज, जीवन में नित आये काज
नेह दोस्ती प्रीत स्वराज की, अत्याधुनिक श्रेष्ठ सिरताज।
नहीं दीन की हँसी उड़ाना, करुणा को उरमन में बसाना
छोटे बड़े सभी की इज्ज़त, यथासमय व्यवहार में लाना।
लूट रुके सरकारी धन की, नशे का कारोबार मिटायें
नष्ट करें न जैविक साधन, प्राकृतिक दोहन घटवायें।
कभी भूप की करें न निन्दा, पशु पक्षी पे दया दिखायें
नित्य नई तकनीक सहारे, अण्ड पिण्ड ब्रहमाण्ड सजायें।
वाणी दृष्टि सतत हो सम्यक, धैर्य विसर न मन अरुझाये
द्वेष क्रोध घृणा अरि निन्दा, तज अन्तस आनन्द न जाये।।