पल में बना-बनाया बिगड़े, भले ही हम जोड़ें दिन-रात
ऊपर वाले की इच्छा से, सुख-दुःख की होती बरसात।
सब कुछ देता बिना बताये
कभी तनिक न दम्भ जताये
दबे पांव चुपके से आकर
राई को गिरिराज बनाये
शोध-बोध से परे सनातन, संसृति करे नहीं आघात।
सोचा हुआ न सोचा जाये
मुक्ता बिना सीप अरुझाये
सावन भादो घन कजरारे
उड़ें कपासी हो बेचारे
कौध दामिनी की छबिधारी, ऐसी लगे न पूँछो बात।
सतत सत्य सार अपनाया
मर्यादा की ज्योति जलाया
खुद सहके आघात चतुर्दिक
नहीं किसी को दु:ख पहुँचाया
रत्ती-रत्ती पुण्य जोड़कर, खाते रहे निरन्तर मात।।
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