पद्माक्षी
श्रीहरि प्रिया सिया वैदेही
दीन हीन पर कीजै ध्यान
भवसंशय में उलझे भटके
महामूढ़ का पोषें प्राण।
अष्टसिद्धि नौनिधि के दाता
बजरंगी को कही थीं माता
कौन पाठ हम पढ़ें आमरण
जिससे हो सम्भव कल्याण।
प्रभुजी कमल नयन कहलाते
दृग पर तेरे मधुप मड़राते
स्वप्न जागरण में भी हरपल
करते सिर्फ़ तेरी पहचान।
जनकदुलारी राम को प्यारी
लवकुश माता भक्त त्रिपुरारी
महारंज है इस त्रिभुवन में
कुछ तो हो सम्वेद्य विधान।।