विधा दूसरी हो नहीं, नित रहे एक प्रारूप
नैसर्गिक श्रीस्रोत शुभ, अनुपम श्रेष्ठ अनूप।
अर्थ निरन्तर एकरस, भले हो सर्वस मूल
कूल शूलमय तल्ख व, धारा हो प्रतिकूल।
नियति सुलेखा एकसी, समयचक्र से दूर
हो चाहे सुख सम्पदा, अथवा अति मजबूर।
अग्नि ऊर्जा वायु जल, भूमि समय आकाश
गुणवत्ता अक्षत अजर, दर्शन का विन्यास।
नवजीवन की वर्जना, मानवता का सार
दिव्यललक शिवसर्जना, अनुपमेय अविकार।
बदल न पाये आत्मा, ऊष्मायित अविराम
पुंज शक्ति का शाश्वत, रूह रूप श्रीराम।।
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